Thursday 13 December 2012


यंत्र 

यंत्र शब्द जानना पहचान शब्द हैं । आधुनिक युग के लोग यंत्र मशीनों को बोलते हैं जो ये सत्य भी है ।
मनुष्य ने अपनी उन्नति के लिए इस यंत्र को ही अपनी सफलता की सीडी के रूप में प्रयोग किया ।
उन्नति अंदर की हो या बाहर की , आध्यात्मिक हो या भौंतिक बिना यंत्र की सायता के संभव नहीं है ।
तन्त्र के मुख्य दो भाग है ।
  1.      मंत्र
  2.      यंत्र

ग्रन्थों में यंत्र को देवताओं का शरीर कहा गया हैं । यंत्र देवता तुल्य होता हैं ।
हमारे ऋषि मुनियों ने आपने दिव्य ज्ञान के प्रगोग से यंत्र के रहस्य को समझा साधारण मनुष्य की सायता के लिए इस का प्रयोग किया । यंत्रों का प्रयोग दैहिक , दैविक , भौतिक अवशकताओं की पूर्ति के लिए किया जा सकता हैं और किया जाता रहा हैं ।

                  यंत्र निर्माण षटकर्मों के लिए किया जाता हैं ।

1.   शांतिकरण
2.  वशीकरण
3.  स्तंभन
4.  विद्धेषण
5.  उच्चाटन
6.  मारण
षटकर्मों की देवियाँ और दिशाएँ  –
1. शांतिकरण की देवी      -  रति     - ईशान कोण
2. वशीकरण की देवी      -  वाणी     -  उत्तर दिशा
3. स्तंभन की देवी        -  रमा      - पूरब दिशा
4. विद्धेषण की देवी       -  ज्येष्ठा    - नेऋर्त्य कोण
5. उच्चाटन की देवी      -   दुर्गा     -  वायव्य कोण
6. मारण  की देवी       -  भद्रकली   -  अग्नि कोण

       यंत्रों के दो वर्ग होते हैं ।
1.       रेखात्मक यंत्र
2.       आकृतिमूलक यंत्र

रेखात्मक यंत्र के निम्न चार वर्ग होते हैं ।
1.      बीजमंत्रगर्भित यंत्र ।
2.      मंत्रवर्णगर्भित  यंत्र ।
3.      अंकगर्भित यंत्र ।
4.      मिश्रमंत्रगर्भित यंत्र ।


यंत्रों की आकृतियाँ –

यंत्र विभिन्न प्रकार के देखने को मिलते हैं उनकी आकृतियां उनके प्रयोग पर निर्भर करती हैं ।
यंत्रों की आकृतियाँ निम्नप्रकर की होती हैं ।
 1.      भूप्रष्ट यंत्र
 2.      मेरुप्रष्ट
 3.      पाताल यंत्र
 4.      मेरुप्रस्तार यंत्र
 5.      कुर्मप्रष्ट यंत्र
 6.      पंच तत्वों की आकृति वाले यंत्र ।

शास्त्रीय दृष्टि से यंत्र सात प्रकार के होते हैं ।
 1.      शरीर यंत्र
 2.      धारण यंत्र
 3.      आसन यंत्र
 4.      मण्डल यंत्र
 5.      पुजा यंत्र
 6.      छत्र यंत्र
 7.      दर्शन यंत्र


यंत्रों का प्रयोग हमेशा जनहित में करना चईए । और अध्यंत्मिक उन्नति के लिए होना चाईये । 

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