यंत्र
यंत्र शब्द जानना पहचान शब्द हैं । आधुनिक युग के लोग यंत्र मशीनों को बोलते हैं जो ये सत्य भी है ।
मनुष्य ने अपनी उन्नति के लिए इस यंत्र को ही अपनी सफलता की सीडी के रूप में प्रयोग किया ।
उन्नति अंदर की हो या बाहर की , आध्यात्मिक हो या भौंतिक बिना यंत्र की सायता के संभव नहीं है ।
तन्त्र के मुख्य दो भाग है ।
1. मंत्र
2. यंत्र
ग्रन्थों में यंत्र को देवताओं का शरीर कहा गया हैं । यंत्र देवता तुल्य होता हैं ।
हमारे ऋषि मुनियों ने आपने दिव्य ज्ञान के प्रगोग से यंत्र के रहस्य को समझा साधारण मनुष्य की सायता के लिए इस का प्रयोग किया । यंत्रों का प्रयोग दैहिक , दैविक , भौतिक अवशकताओं की पूर्ति के लिए किया जा सकता हैं और किया जाता रहा हैं ।
यंत्र निर्माण षटकर्मों के लिए किया जाता हैं ।
1. शांतिकरण
2. वशीकरण
3. स्तंभन
4. विद्धेषण
5. उच्चाटन
6. मारण
षटकर्मों की देवियाँ और दिशाएँ –
1. शांतिकरण की देवी - रति - ईशान कोण
2. वशीकरण की देवी - वाणी - उत्तर दिशा
3. स्तंभन की देवी - रमा - पूरब दिशा
4. विद्धेषण की देवी - ज्येष्ठा - नेऋर्त्य कोण
5. उच्चाटन की देवी - दुर्गा - वायव्य कोण
6. मारण की देवी - भद्रकली - अग्नि कोण
यंत्रों के दो वर्ग होते हैं ।
1. रेखात्मक यंत्र
2. आकृतिमूलक यंत्र
रेखात्मक यंत्र के निम्न चार वर्ग होते हैं ।
1. बीजमंत्रगर्भित यंत्र ।
2. मंत्रवर्णगर्भित यंत्र ।
3. अंकगर्भित यंत्र ।
4. मिश्रमंत्रगर्भित यंत्र ।
यंत्रों की आकृतियाँ –
यंत्र विभिन्न प्रकार के देखने को मिलते हैं उनकी आकृतियां उनके प्रयोग पर निर्भर करती हैं ।
यंत्रों की आकृतियाँ निम्नप्रकर की होती हैं ।
1. भूप्रष्ट यंत्र
2. मेरुप्रष्ट
3. पाताल यंत्र
4. मेरुप्रस्तार यंत्र
5. कुर्मप्रष्ट यंत्र
6. पंच तत्वों की आकृति वाले यंत्र ।
शास्त्रीय दृष्टि से यंत्र सात प्रकार के होते हैं ।
1. शरीर यंत्र
2. धारण यंत्र
3. आसन यंत्र
4. मण्डल यंत्र
5. पुजा यंत्र
6. छत्र यंत्र
7. दर्शन यंत्र
यंत्रों का प्रयोग हमेशा जनहित में करना चईए । और अध्यंत्मिक उन्नति के लिए होना चाईये ।